उसने कहा
था मुस्कराना तुम
और हम
मुस्कराते हैं
उसने कहा
था पग
बढ़ाना तुम
और हम
मंजिलों को
पाते हैं!
रोकता कैसे मुझको मेरा अपना ही
क़दम
टोकता कैसे मुझको मेरा अपना ही
जहाँ
बस एक
वादा था
और उसे
दुहराते हैं
उसने कहा
था मुस्कराना तुम
और हम
मुस्कराते हैं!
सिमटता रहा
एक लम्हें में सदियों का सफ़र
हो रहा
था अनचाहे वक़्त का
यूँ असर
शब्द मेरे ही थे,
पर
भाव उन्हीं से लाते हैं
उसने कहा
था मुस्कराना तुम
और हम
मुस्कराते हैं!
हवा में
इतनी नमीं लगता है
कोई रोया है
नींद नहीं फ़िर भी
किस जहाँ में खोया है
आ जाओ
भी वापिस
हम उन्हें बुलाते हैं
उसने कहा
था मुस्कराना तुम
और हम
मुस्कराते हैं!
-अमर कुशवाहा
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