Friday, June 24, 2016

मैं भटकती आत्मा

ब्रह्मराक्षस कहो मुक्तिबोध का 

या समय के शोध का

मन के अतल गहराइयों में धँसा

मैं भटकती आत्मा!

 

दो क्षणों के बीच के अनगिनत क्षण

जाना समय के इस छोर से उस छोर तक

गिन रहा टिक-टिक-टिक घड़ी सा

मैं भटकती आत्मा!

 

दशों दिशा बस रक्त की दीवार है

घुट रहा दम प्यास से बेहाल है

मुर्क्षित पड़ा है होश में निढ़ाल सा

मैं भटकती आत्मा!

 

मार्क्स से संतुष्टि मिली

गांधीवाद ने दिया सहारा

इक्कीसवीं सदी में त्रिशंकु सा

मैं भटकती आत्मा!

-अमर कुशवाहा

No comments: