Tuesday, June 21, 2016

मेरे लिए

कभी-कभी तुम्हारी नजरों में प्रेम पनपता है मेरे लिए 
वो शांतचित आँखें जिनमे कहने को बहुत कुछ है 
पर मेरी ये अनपढ़ नजर तुम्हारी नजरों को पढ़ नहीं सकती 
ढूंढो उस प्रश्न को जो मेरी आँखों में गुम है तुम्हारे लिए



मानने से ही सब कुछ तो हो नहीं सकता
इजहार न करने से इकरार नहीं हो सकता
तुम्हारे मासूम चेहरे का भाव शायद सदियों से तुममें ही गुम है 
पर मैं  मानता हूँ रचने वाले ने इसे रचा है सिर्फ मेरे लिए


तुम्हारे होंठो से जब मेरी मुहब्बत गुनगुनायेगी 
तेरे कपोलों कि लाली से सारा आसमान लाल हो जाएगा 
सूरज तेरे चेहरे कि चमक से अस्त हो जाएगा 
जैसे ही पनपेगा प्रेम तुम्हारे दिल में मेरे लिये 


तुम्हारी घटा जैसी लट जाने कितनो को मदहोश करती हैं
शायद वो भी कभी मेरी अँगुलियों को तरसती है
खुश होगा रचयिता तुम्हारी केशों को देखकर 
कभी तो चेहरे पर ये लटें गिरेंगी सिर्फ मेरे लिए 


तेरी मुस्कान, हाँ तेरी मुस्कान, क्या कहूँ इसके बारे में 
तुम्हारे चेहरे का संपूर्ण दर्शन कराता एक दर्पण है ये 
इस मुस्कान पर न जाने कितने 'अमर' हो जायेंगे 
पर ये मुस्कान भी एक दिन होगी सिर्फ मेरे लिए!!

-अमर कुशवाहा

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