Friday, September 9, 2011

भूले-बिसरे

 ख़ामोशी के सबब का मैं इसरार नहीं करता

अपनों के दिये ज़ख्म मैं बरबाद नहीं करता!

 

रौशनी के तारीफ़ के हैं अब पुलिंदे बंध रहे

बरबस पिघलता मोम कोई फ़रियाद नहीं करता!

 

तोड़ के ग़ुलाब को ले जाता है हर कोई

काँटों की पहरेदारी का कोई हिसाब नहीं करता!

 

तिनके को जोड़-जोड़ कर बनाया था आशियाँ

अब सूखी टहनियों से कोई क़रार नहीं करता!

 

बुलाती हैं आज भी चंचल फ़िज़ायेंअमर

पर राह में बैठा कोई इंतज़ार नहीं करता!

-अमर कुशवाहा