Saturday, August 9, 2014

वो छोड़कर गये

कुछ इस तरह से वादों को तोड़कर गये

वो क्यों सरे-बाज़ार मुझे छोड़कर गये?

 

ही मंज़िल और आशियें का पता

अन्जानी से गली में मुझे मोड़कर गये!

 

हाथ छू सके पकड़ सके दामन

मेरी तरफ़ से ऐसे मन मरोड़कर गये!

 

शाख़--शज़र पर बिठा कर मुझे तनहा

शांत से दरख़्त को ख़ूब झंझोड़कर गये!

 

कैसे बयाँ करेअमरअब उनके सितम

जाते-जाते ख़ुद को मुझसे जोड़कर गये!

-अमर कुशवाहा