उलझे ही रहे मसले भी भुलाने होंगे
वक़्त के शाख़ से पत्ते भी चुराने होंगें!
वक़्त के शाख़ से पत्ते भी चुराने होंगें!
एक शिद्दत भरी निग़ाह ही काफ़ी होती
अब उसे पूरी दास्तान भी सुनाने होंगे!
वो आव़ाज जिससे ख़ामोशी बिछ जाये
ऐसे ज़ज्बात अनचाहे भी छुपाने होंगे!
ऐसे ज़ज्बात अनचाहे भी छुपाने होंगे!
इंसान सही-गलत में भला परेशान क्यों रहे?
ख़ुदा को अब नयी राह भी सुझाने होंगे!
ख़ुदा को अब नयी राह भी सुझाने होंगे!
दहलीज तक पहुँच ग़र पाँव रुक जाये ‘अमर’
ऐसे रिश्तों के तो बंधन भी पुराने होंगे!
ऐसे रिश्तों के तो बंधन भी पुराने होंगे!