Saturday, September 12, 2020

उलझे मसले

उलझे ही रहे मसले भी भुलाने होंगे
वक़्त के शाख़ से पत्ते भी चुराने होंगें!

एक शिद्दत भरी निग़ाह ही काफ़ी होती
अब उसे पूरी दास्तान भी सुनाने होंगे!

वो आव़ाज जिससे ख़ामोशी बिछ जाये
ऐसे ज़ज्बात अनचाहे भी छुपाने होंगे!

इंसान सही-गलत में भला परेशान क्यों रहे?
ख़ुदा को अब नयी राह भी सुझाने होंगे!

दहलीज तक पहुँच ग़र पाँव रुक जायेअमर
ऐसे रिश्तों के तो बंधन भी पुराने होंगे!


-अमर कुशवाहा