Wednesday, July 17, 2019

एक ग़ज़ल_१७.०७.२०१९


ख़्वाबों की बुलंदी से हमें भरमाया करो

अपने शीशे के महल पर इतराया करो!

 

बुझते आफ़ताब में जिनकी बिखर जाये चमक

ऐसे ज़ज्बात भूले से भी घर लाया करो!

 

बारहा सिलने पर भी जो उधड़ जाते हों

ऐसे धागों पर रिश्तें कभी बनाया करों!

 

जिस मय कि आशिकी में हो घर से अदावत

मेरे साकी ऐसी शराब  कभी पिलाया करो!

 

जिसके अहसास से आँखें नम हो जायेअमर

ऐसी तस्वीर दीवाने को दिखाया करो!


-अमर कुशवाहा

Monday, July 15, 2019

तुमको देखा करते हैं...

पूनम में नहाया चाँद देख ख्व़ाब को देखा करते हैं

तस्वीर तेरी आगे रख कर हम तुम को देखा करते हैं!

 

झपकी पलकें उनींदी आँखें दीदार तुम्हारा करते हैं

जिस राह गुज़रते हो अक्सर उस राह को देखा करते हैं!

 

जब आँख खुली तो हमने पाया नींद सिरहाने छूट गयी

धीरे-धीरे बुझती जाती हम रात को देखा करते हैं!

 

रस्मों कि ज़रूरत हैं क्यों फ़िर जब रूह मिली है तुमसे

जिसकी छाँव में प्रेम पला उस बाग़ को देखा करते हैं!

 

इकरार--वफ़ा का मतलब जाने कब समझेंअमर

अधरों के कोनों में बिखरी मुस्कान को देखा करते हैं!


-अमर कुशवाहा