Wednesday, July 17, 2019

एक ग़ज़ल_१७.०७.२०१९


ख़्वाबों की बुलंदी से हमें भरमाया करो

अपने शीशे के महल पर इतराया करो!

 

बुझते आफ़ताब में जिनकी बिखर जाये चमक

ऐसे ज़ज्बात भूले से भी घर लाया करो!

 

बारहा सिलने पर भी जो उधड़ जाते हों

ऐसे धागों पर रिश्तें कभी बनाया करों!

 

जिस मय कि आशिकी में हो घर से अदावत

मेरे साकी ऐसी शराब  कभी पिलाया करो!

 

जिसके अहसास से आँखें नम हो जायेअमर

ऐसी तस्वीर दीवाने को दिखाया करो!


-अमर कुशवाहा

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