Sunday, July 24, 2022

मुक्ति

सच बोलना उतना कठिन नहीं
जितना कि सच सुनना!
क्योंकि सच सुनने पर
टूट जातीं हैं...एक-एक कर
वर्षों से बनायीं सारी भ्रांतियाँ,
वर्षों की अर्जित सीख,
वर्षों से संजो कर रखे झूठ,
और तो और,
निकलना ही पड़ता है
ख़ुद के पिंजरे से
जिसे हम घर समझ बैठे थे!
घर झूठा ही सही
त्यागा नहीं जाता!
और शायद, इसलिए
कोई सच नहीं सुनना चाहता!

पर, मैं मिलना चाहता हूँ
ठीक किसी ऐसे शख्स से
जिसमें सच सुनने का साहस हो
ताकि मैं भी साहस जुटा सकूँ
और उससे मिलकर, उसके द्वारा
अपना सच सुन सकूँ!
क्योंकि, जो धारक नहीं
वह उद्धारक नहीं हो सकता!
काश! कोई मुझे मिल जाये
सच सुनने वाला
मैं बस अपने पिंजरे से
मुक्त होना चाहता हूँ!

-अमर कुशवाहा

Monday, June 6, 2022

नया मापदंड

पुरानी पंक्तियाँ फ़िर से दुहराईं गयीं
पुरानी कहानियाँ फ़िर से सुनाईं गयीं
पुरानी तलवारें फ़िर से निकाले गये

पुरानी ग़लतियाँ फ़िर से दिखलाईं गयीं!


किसी ने प्रश्न नहीं किया
उन्हें तो प्रयोजन थाकेवल
पुरानी पंक्तियों से,
पुरानी कहानियों से,
पुराने तलवारों से,
पुरानी ग़लतियों से!


और इस तरह वर्तमान में
तथ्यों का गला कुचला गया
किसभ्यता  जाने
कितने ही पग पीछे जाकर
ठीक उसी मोड़ पर खड़ी हो गयी
जब वह असभ्यता कही जाती थी!


अब बस ताकतीं है
वर्तमान की आँखेंऔर
आँसुओं के सैलाब में
बची है बस एक कहानी
कहाँ को जाना थाऔर
सब किधर चले आये?
-अमर कुशवाहा

Tuesday, March 29, 2022

अपने-अपने क़िरदार

काश!
कभी-कभी
हम बदल पाते
अपने-अपने क़िरदार!

तो शायद मैं जान पाता कि,
अचानक से तुम्हारी आँखों में
आँसूं क्यों आ जाते हैं?
तो शायद तुम जान पातीं कि,
मैं इतना बातूनी होकर भी यूँ हीं
चुप क्यों हो जाता हूँ?

तो शायद मैं जान पाता कि,
तुम इतनी बातूनी होकर भी
अक्सर चुप क्यों रह जाती हो?
तो शायद तुम जान पातीं कि,
किसी भी बात पर मेरी आँखों में
आँसूं क्यों नहीं आते?

काश!
कभी-कभी
हम बदल पाते
अपने-अपने क़िरदार!

Tuesday, March 8, 2022

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

बस थोड़े ही देर में जब

घड़ी रात के बारह बजायेगी

तो विलुप्त हो उठेंगे

वो पंक्तियाँ, वो संदेश

ठीक किसी एंडेंजर्ड स्पेसीज़ की तरह

चलो डायनासोर ही मान लो!


कल सुबह से पुनः

लोग माँगेंगे राम-राज्य

सीता-राज्य की बात तो

किसी कल्पना में न होगी!


कल सुबह से पुनः

लोग माँगेंगे एक-कप चाय

प्रश्न करेंगे थोड़ी सी ही देर होने पर!


कल सुबह से ही पुनः

माँ रसोई में खटती रहेगी

बहनों के कपड़े देखे जाएँगे!


कल सुबह से ही पुनः

तुम्हारी नौकरी को आर्थिक स्वतंत्रता कहकर

कोई तुम्हारे अर्थ पर पूर्ण नियंत्रण रखेगा!


कल सुबह से ही पुनः

तुम भूल जाओगी

कि तुम भी मनुष्य हो!

कि प्रश्न करना ही

मानव होने का पहला धर्म है!


यदि, केवल आज के दिवस पर तुम इठलाओगी

तो भूलो मत! याद रखो!

गिद्ध हैं और भेड़िए भी हैं चारों तरफ़

तुम्हें नोंच-खाने के लिए!


केवल आज की मीठी चाशनी में मत घुल जाना

तुम्हें हथियार बनना होगा

हर दिन लड़ना होगा

प्रत्येक दिन ऊपर उठना होगा

यह साबित करने के लिए

कि तुम भी मनुष्य हो

कदाचित् मानवों में भी श्रेष्ठ!


-अमर कुशवाहा


Sunday, February 13, 2022

लोकतंत्र

वो आयेंगे
तुम्हें बाटेंगे
भाषा के आधार पर
तुम बस टिके रहना
रोटी के सवाल पर!

वो आयेंगे
तुम्हें बाटेंगे
जाति के आधार पर
तुम बस टिके रहना
शिक्षा के सवाल पर!

वो आयेंगे
तुम्हें बाटेंगे
धर्म के आधार पर
तुम बस टिके रहना
मकान के सवाल पर!

वो आयेंगे
तुम्हें बाटेंगे
भौगोलिक आधार पर
तुम बस टिके रहना
अर्थ के सवाल पर!

वो आयेंगे
तुम्हें बाटेंगे
वतनपरस्ती के आधार पर
तुम बस टिके रहना
नीयत के सवाल पर!

वो आयेंगे
चीखेंगे, चिल्लायेंगे
ख़ूब शोर मचायेंगे
तुम बस टिके रहना
बुनियाद के सवाल पर!

-अमर कुशवाहा