Sunday, July 24, 2022

मुक्ति

सच बोलना उतना कठिन नहीं
जितना कि सच सुनना!
क्योंकि सच सुनने पर
टूट जातीं हैं...एक-एक कर
वर्षों से बनायीं सारी भ्रांतियाँ,
वर्षों की अर्जित सीख,
वर्षों से संजो कर रखे झूठ,
और तो और,
निकलना ही पड़ता है
ख़ुद के पिंजरे से
जिसे हम घर समझ बैठे थे!
घर झूठा ही सही
त्यागा नहीं जाता!
और शायद, इसलिए
कोई सच नहीं सुनना चाहता!

पर, मैं मिलना चाहता हूँ
ठीक किसी ऐसे शख्स से
जिसमें सच सुनने का साहस हो
ताकि मैं भी साहस जुटा सकूँ
और उससे मिलकर, उसके द्वारा
अपना सच सुन सकूँ!
क्योंकि, जो धारक नहीं
वह उद्धारक नहीं हो सकता!
काश! कोई मुझे मिल जाये
सच सुनने वाला
मैं बस अपने पिंजरे से
मुक्त होना चाहता हूँ!

-अमर कुशवाहा

1 comment:

Unknown said...

Every line is true 👍 close to real life