Tuesday, November 17, 2020

रेल की पटरी

दूर तक छितरी हुयी ख़ूब अँधेरी रात हो
एक लंबा सफ़र हो और तुम्हारा साथ हो!

दिखता नहीं कुछ भी पर तुमको ढूँढ लूँगा
एक सिरे को पकड़ कर ग़र कभी बात हो!

बिना कहे भी जो हाल-ए-दिल जान ले
ऐसे जहाँ से हर सुबह  मेरा आद़ाब हो!

इस उम्र का क्या बस गुज़रती जायेगी
ग़र रोकने वाला न कोई ज़ज़्बात हो!

रेल की पटरी से निकले तुम भी 'अमर'
फ़िर मिलन का ख्व़ाब कैसे आबाद हो!