Friday, January 31, 2020

कुछ दिन पहले...

मनु  से  जानवर  हो  जाने  की  रफ़्तार  पढ़ा  करता  हूँ

रोज़ सुबह तड़के-तड़के ही ताज़ा अख़बार पढ़ा करता हूँ।

 

कुछ दिन पहले  अमन - चैन  जिस गाँव की बुनियाद थे

अब जलते  घर और बुझता चूल्हा हर बार पढ़ा करता हूँ।

 

कुछ दिन पहले बिटिया को सब लक्ष्मी कह के बुलाते थे

अब फटे वस्त्र नुचा तन  बिखरी चित्कार  पढ़ा करता हूँ।

 

कुछ दिन पहले जिस अम्मा की  गोद में कई सिर सोते थे

अब भीख माँगती  गुमसुम अम्मा  हरिद्वार पढ़ा करता हूँ।


कुछ दिन पहले जो मुल्क़  हाथ मिलाते  दिखते थे 'अमर'

अब  छिड़ी  दुश्मनी  तोप  तने हैं  सरकार पढ़ा करता हूँ।

-अमर कुशवाहा

Wednesday, January 29, 2020

आज का दौर...

वो कुछ  लकीरें  खींचकर  कलाकार  हो गये

वाह-वाही के दौर में सब  साहित्यकार हो गये।

 

दाल में  ग़र  कंकड़ मिले  तो निकाल फ़ेंक दूँ

कंकड़  ही अब पक  रहा  दाल बेकार हो गये।

 

जिस  नींव  पर  मुल्क़  क़िस्मत--बुलंद  था

जड़ों को  खोदने से अब  पत्ते  बेज़ार हो गये।


सही ग़लत  को  मात  दे  तो  बात  कुछ बनें

गाँधी-सुभाष के नाम पर लोग शिकार हो गये।


पाँचवीं ज़मात भी जो पास कर पाये 'अमर'

जम्हूरियत में ज़ाहिल भी इतिहासकार हो गये।

-अमर कुशवाहा