मनु से जानवर हो जाने की रफ़्तार पढ़ा करता हूँ
रोज़ सुबह तड़के-तड़के ही ताज़ा अख़बार पढ़ा
करता हूँ।
कुछ दिन
पहले अमन - चैन जिस गाँव की बुनियाद थे
अब जलते घर और बुझता चूल्हा हर बार पढ़ा करता हूँ।
कुछ दिन
पहले बिटिया को सब
लक्ष्मी कह
के बुलाते थे
अब फटे वस्त्र नुचा तन बिखरी चित्कार पढ़ा करता हूँ।
कुछ दिन
पहले जिस
अम्मा की गोद में
कई सिर
सोते थे
अब भीख माँगती गुमसुम अम्मा हरिद्वार पढ़ा करता हूँ।
कुछ दिन
पहले जो
मुल्क़ हाथ मिलाते दिखते थे
'अमर'