वो कुछ लकीरें खींचकर कलाकार हो गये
वाह-वाही के दौर
में सब साहित्यकार हो
गये।
दाल में ग़र कंकड़ मिले तो निकाल फ़ेंक दूँ
कंकड़ ही अब पक रहा दाल बेकार हो गये।
जिस नींव पर मुल्क़ क़िस्मत-ए-बुलंद था
जड़ों को खोदने से अब पत्ते बेज़ार हो गये।
सही, ग़लत को मात दे तो बात कुछ बनें
गाँधी-सुभाष के नाम पर लोग शिकार हो गये।
पाँचवीं ज़मात भी जो
पास न
कर पाये 'अमर'
-अमर कुशवाहा
2 comments:
Kya likhte hai aap
Thanks a lot.
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