Saturday, October 16, 2021

आवारा कवि

 सड़कों पर घूमता रहता था बिना किसी प्रयोजन के,

या फ़िर यूँ कहूँ कि, उसके प्रयोजन का

अपना कोई भी व्यक्तिगत आधार नहीं था!

जब भी देखता किसी बूढ़े-लाचार को भीख माँगते

बिना किसी की परवाह किये बैठ जाता था उसके पास

पूछने को उसका हाल? आखिर वह लाचार क्यों हुआ?

अभिजात्यवादी चेतना के कारण? या फ़िर

कैपिटलिस्ट मूल्य रही उसकी वजह; कि जो

अर्थव्यवस्था में अर्थोपाजन न कर पाये

वह केवल बोझ है समाज पर? या फ़िर

कोई नितांत वैयक्तिक कारण?


कि तभी कहीं एक ज़ोर की आव़ाज हुयी

जैसे कि बादल ख़ूब जोर से गरज़ पड़ा हो!

उसने देखा एक छटपटाता हुआ बेज़ान शरीर

सड़क पर लहुलुहान पड़ा हुआ!

वह बैठा नहीं रहा, दौड़ पड़ा उस एक्सीडेंट वाली जगह पर

ज़ोर-ज़ोर से पुकारता रहा, सब बगल से गुज़रने वालों को

तमाशाई भीड़ थी, केवल दो हाथ नहीं बढ़ सके सहारा देनें!

और कुछ पल बाद शरीर का तड़पना बंद हो गया!


आँखों में पानी भर वह उठ चला

और वह चलता ही रहा, जब तक कि 

शहर भर नहीं गया कृत्रिम रौशनी से

सब कुछ उजला-उजला, सब कुछ साफ़!


वह चीखता रहा, चिल्लाता रहा

जी भर कर कोसता रहा सबको

अपनी संवेदनाओं में तड़प-तड़प कर

गरियाता रहा इस कृत्रिमता को

और इसी उपक्रम में थक-हार 

बेहोश होकर वह बेदम हो गया!


अगले ही दिन 'आवारा कवि' नाम से से

एक विडियो यूट्यूब पर खूब मशहूर हो रहा था

जो राह चलते बना ली थी किसी ने पिछले दिन

अब उसे करोड़ो देख-सुन रहे थे पैसे ख़र्च कर

पर उसे तब नहीं सुना किसी ने 

जब वह कुछ सुनाना चाहता था!


-अमर कुशवाहा