Wednesday, February 17, 2021

अज़कार

गढ़-गढ़ कर नये झूठ अज़कार  बन गये
कला  भी  छोड़कर कलाकार  बन  गये!

दो गिन्नियाँ  भी कभी जो जोड़  नहीं पाये
घर को  बेचकर वही साहूकार बन  गये!

कोई भी नज़्म उन  तक नहीं पहुँच पाती
सब जानकर भी जब ज़फाकार बन गये!

जिसकी आशिक़ी में ऊम्र यूँ ही गुज़ार दी
आज उसी के क़त्ल में ख़ताकार बन गये!

आईना भी हाथ बाँधे लाचार खड़ा 'अमर'
चेहरे बदल-बदलकर अदाकार बन गये!!

                                    -अमर कुशवाहा

Sunday, February 7, 2021

अद्वैत- अद्वय


प्रिय पुत्र,

इस एकवचन के सम्बोधन पर शायद दोनों को ही हँसी आ रही होगी! है न? पर एक पिता को अपने दो पुत्रों को एक साथ उनके जन्मदिन पर सम्बोधित करने का अवसर ही कितना प्राप्त होता है विशेषकर जब वह जुड़वा न हों! यह संयोग ही है कि तुम दोनों का जन्मदिन एक ही तिथि को पड़ता है- सात फ़रवरी!
अपने पुत्रों अद्वैत और अद्वय के साथ

देखते ही देखते समय कितनी तेजी से सब कुछ को ख़यालों में पिरोता हुआ भागता चला गया! बेटा अद्वैत! पता ही नहीं चला कितनी जल्दी तुम पाँच वर्ष के हो गये! केवल मेरी गोद में सोने वाला अचानक से इतना स्वतंत्र हो गये कि अपना सारा काम स्वयं करने लगे! लगता है जैसे कल ही की बात हो कि मेरी आहट सुन बकैंयाँ चलते हुये सरपट मेरे पास भागकर आ जाते थे! थोड़ा बड़े हो गये पर आदत अभी भी वही है- बस अब दौड़कर ‘पापा’ कहकर मुझसे लिपट जाते हो! और इस छोटी सी उम्र में ईतनी समझदारी कि अद्वय के मेरे पास पहुँचते ही मेरी गोद से उतरकर अपने छोटे भाई को मेरे गोद में आने देते हो! कभी-कभी तो डर लगता है कि कहीं तुम इतने समझदार तो नहीं हो रहे कि बचपना करना भूल जाओ! पर, मैं भूलने नहीं दूँगा! मैं चाहता हूँ कि तुम हर वह शरारत, बचपना करो जो कभी मैंने किये थे! हर उम्र की एक शरारत होती है- उसे ज़रूर करना, पर सामाजिक साराकारों के साथ! वरना उम्र का क्या है? इस भागते शोर में बस निकलती जायेगी और समय फ़िर पीछे नहीं लौटेगा! नहीं! पर शायद हम ख़ुशनसीब थे! समय वापिस लौटा था ठीक तुम्हारे तीसरे जन्मदिवस पर- अद्वय का रूप लेकर! तुम्हें तो शायद याद भी नहीं होगा कि हॉस्पिटल में अद्वय को अपनी गोद में लेकर तुमने कैसे उसे ‘बेबी शार्क डू डू डू डू...’ गीत सुनाया था और वह टुकुर-टुकुर बस तुम्हें देखता रहा था! अद्वय के रूप में हमें फ़िर से तुम्हारा बचपन दुबारा जीने को मिला! और अद्वय कुछ ज्यादा ही शरारती रहा! अभी भी है!

अद्वय! नटखट! तुम्हारी शरारत देखते हुये आज पूरे दो वर्ष हो गये! तुम इतने बड़े ड्रामेबाज़ हो कि मम्मा-पापा के अलावा भैया को भी सुबह से रात तक अपनी शैतानियों से परेशान करते रहते हो! नैपी गीला हुआ है या नहीं, इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं, पर तुम्हारा खिलौना भैया के हाथ में कैसे है- इसका बखूबी ख़याल है तुम्हें! भैया मेरी गोद में बैठा है तो तुम्हें भी ठीक उसी वक़्त मेरी ही गोद में बैठना है! जो भैया करेगा वही तुम्हें भी करना है! भैया सोफ़े पर कूदेगा तो तुम्हें भी सोफ़े पर कूदना है! कॉम्पीटीटिव इंडेक्स में टॉप पर हो तुम! समझे! पर हो बहुत ही प्यारे! अच्छा लगता है दोनों की नोंक-झोंक और प्यार देखकर! और कभी-कभी तुम्हारे शोर मचाने पर मैं गुस्सा भी करता हूँ! सच कहूँ तो मुझे मेरे माँ की याद आती है- कैसे उन्होंने हम तीन भाइयों को पाला होगा, विशेषकर मुझे!

उम्र के इस पड़ाव की एक ख़ासियत यह है कि सारा अकाउंट हर रात बंद होता है और अगली सुबह नये सिरे से नया बहीखाता चालू हो जाता है! यदि संभव हो सके तो जीवन भर ऐसे ही करना! मन पर कभी भी कोई बोझ नहीं रहेगा! बहुत कुछ बताना है तुम्हें! कितना कुछ दिखाना है तुम्हें! समय के साथ-साथ धीरे-धीरे बताउँगा; अपने बचपन की बातें- गाँव के किस्से और वहाँ का अपनापन, जहाँ मैं पला-बढ़ा! ताकि उस मिट्टी से तुम दोनों भी ठीक वैसे ही जुड़ सको जैसे कि मैं जुड़ा हूँ! फ़िर तुम पाओगे कि इस भीड़ और शोर से परे भी एक दुनिया है- मधुर संगीत, शांति, हरियाली और उपजाऊ मिट्टी से भरपूर, जिसमें फ़सल लहलहाते हैं! तुम भी लहलहाओगे एक दिन! और आगे क्या कहूँ? बस ईश्वर से ईतनी ही प्रार्थना है कि तुम्हें उन सबका आशीर्वाद मिल सके, जिन सबकी वज़ह से मैं हूँ, मेरा यह वज़ूद है! क्योंकि वह हैं, आज इसी कारण तुम दोनों हो! अंत में- अद्वैत (पार्थ) और अद्वय (सुपर कमांडो ध्रुव) दोनों को तुम्हारे जन्मदिन पर असीम प्रेम एवं ढेर सारा आशीर्वाद!

-तुम्हारे पापा
०७.०२.२०२१

Monday, February 1, 2021

अदाकारी

चंद अल्फाज़ से घर गिराने का ख़याल क्या है?
क़लम की अदाकारी में देखो क़माल क्या है?

घोंप कर खंज़र पहले तसल्ली कर लेते हैं
वही फ़िर पूछते हैं मुझसे कि हाल क्या है?

मुद्दतें बदली तो हर बार नये सितमगार हुये
सहने वालों की आख़िर यहाँ मज़ाल क्या है?

झूठे आँकड़े हैं फिर से फ़ाईलों की गवाही में
पुराने क़ायदें हैं फ़िर यह मचा बवाल क्या है?

जवाबों से ख़ुदाया को है परहेज़ क्यों 'अमर'
बुझती आँखों में सबके ऐसा सवाल क्या है?

-अमर कुशवाहा