Wednesday, February 17, 2021

अज़कार

गढ़-गढ़ कर नये झूठ अज़कार  बन गये
कला  भी  छोड़कर कलाकार  बन  गये!

दो गिन्नियाँ  भी कभी जो जोड़  नहीं पाये
घर को  बेचकर वही साहूकार बन  गये!

कोई भी नज़्म उन  तक नहीं पहुँच पाती
सब जानकर भी जब ज़फाकार बन गये!

जिसकी आशिक़ी में ऊम्र यूँ ही गुज़ार दी
आज उसी के क़त्ल में ख़ताकार बन गये!

आईना भी हाथ बाँधे लाचार खड़ा 'अमर'
चेहरे बदल-बदलकर अदाकार बन गये!!

                                    -अमर कुशवाहा

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