आधा जीवन आधी कहानी
आधे स्वप्न आधी निशानी
सम्पूर्ण शरीर व्यक्तित्व चूरा
मैं अधूरा!
चले थे
कई साथ
में, एक
से विश्वास में
लक्ष्य तक
पहुँचे सभी,
मै रहा
परिहास में
श्याम हुये वस्त्र मेरे, रंग भूरा
मैं अधूरा!
आधार के
निर्माण में
मृदा रहा
खींचता
गारा बनाने के लिए
श्वेद से
मैं सींचता
सूर्य की
चमक बढ़ी,
सब रहा
झूरा
मैं अधूरा!
जले हुये हैं हाथ
मेरे, पके
हुये अब
बाल मेरे
पलकों का
भार न
उठ रहा
लड़खड़ाते चाल
मेरे
‘सब कुछ’
के चाह
में ‘कुछ’
न हुआ
पूरा
-अमर कुशवाहा