Friday, December 9, 2011

मेरा हिमालय

मेरे छत के पाईप से

हर बरसात में

पानी की मोटी धार गिरती है

और मैं देखता हूँ

कृत्रिम-प्रकृति का संगम!

मुझे मेरी चौहद्दी में ही

एक झरना मिल गया है!

लगाया है मैंने, अशोक, ताड़,

आम, अमरूद, केला, गुड़हल,

गेंदा और गुलाब!

घर के पीछे की ज़मीन

उबड़-खाबड़ है,

यही मेरा हिमालय है!

अमरनाथ की यात्रा

बाबूजी के पैर दबाकर होती है

और माँ के गोद में सिर रखकर

गंगोत्री भी पहुँचता हूँ!

फ़िर, हमारे ह्रदय से प्रेम की

गंगा-यमुना भी निकलती है

जिसमें हर क्षण नहाकर

हम नितांत शुद्ध हैं!


-अमर कुशवाहा