Tuesday, October 20, 2020

रिश्ते-नाते

बस यही चूक रह गयी इस ज़माने में
मुहब्बत भूल बैठे लोग आजमाने में!

जरा सी हूक़ पर रसनाई बिखेर देते थे
वो कलम खो गयी कहीं अब फ़साने में!

सब बेहयाई पर जो जुबाँ ख़ामोश रही
वही उस्ताद बन बैठे हैं अब सताने में!

जो पत्ते जलने पर केवल हवा ही देते थे
वही हाकिम बने हैं अब मुझे बचाने में!

दर्द परेशां करता रहा सारी रात 'अमर'
एक उम्र सी क्या गुज़री रिश्ते निभाने में!

-अमर कुशवाहा

Friday, October 9, 2020

अर्धांगिनी

नया नहीं कुछ पुराना है तुमसे
साँसों का एक तराना है तुमसे
बहती हुयी दरिया के संग बहूँगा
तुमसे ये हर पल मैं तो कहूँगा
तुम ही हो सुबह का कँवल
तुम ही मेरी पहली ग़ज़ल!


तुम हर पल यूँ गुज़रते नहीं थे
तुम बन घटा भी बरसते नहीं थे
पहली नज़र में न तुम थे भाये
मुझको तेरे न घेरे कोई साये
पर चाहा है जबसे अज़ल
तुम ही मेरी पहली ग़ज़ल!


बातों का एक सिलसिला बन पड़ा था
राहों का एक काफ़िला बन पड़ा था
चाँदनी भी आकर सुलाती थी हमको
आ ठंडी हवा फ़िर जगाती थी हमको
न था जिंदगी में ख़लल
तुम ही मेरी पहली ग़ज़ल!


इज़हार-ए-वफ़ा जब मैंने किया था
इक़रार-ए-वफ़ा तब तुमनें किया था
हम तुम फ़िर ऐसे जुड़ने लगे थे
परिंदों के माफ़िक उड़ने लगे थे
ख़्वाबों का बनाया एक महल
तुम ही मेरी पहली ग़ज़ल!


-अमर कुशवाहा