Tuesday, October 20, 2020

रिश्ते-नाते

बस यही चूक रह गयी इस ज़माने में
मुहब्बत भूल बैठे लोग आजमाने में!

जरा सी हूक़ पर रसनाई बिखेर देते थे
वो कलम खो गयी कहीं अब फ़साने में!

सब बेहयाई पर जो जुबाँ ख़ामोश रही
वही उस्ताद बन बैठे हैं अब सताने में!

जो पत्ते जलने पर केवल हवा ही देते थे
वही हाकिम बने हैं अब मुझे बचाने में!

दर्द परेशां करता रहा सारी रात 'अमर'
एक उम्र सी क्या गुज़री रिश्ते निभाने में!

-अमर कुशवाहा

1 comment:

Anonymous said...

Very nic