तुम्हारे तिलिश्म-ए-दुनियां को छूट जाना है
ये जो नाज़ा-ए-क़लम है टूट जाना है।
हवाओं में खड़े किये हो जो ईबारतें नयीं
जम्हूरियत को एक दिन इनसे रूठ जाना है।
कहानियों का मुल्क़ है संभावना गढ़े रहो
खौलता पानी है बस भाप उड़ जाना है।
पेट है सिकुड़ा हुआ और उभरीं पसलियां
हाशिये पर है लहू उसको भी सूख जाना है।
आँधियों में चाह थी चिराग़ जलाने की 'अमर'
अब लड़खड़ाती राह में बहुत दूर जाना है।