तुम्हारे शहर की गलियों का हाल क्या होगा?
जो हम नहीं वहाँ तो फ़िर ही और क्या होगा?
दरख्तों के दरकने से जो दब जाती हो
ऐसी सदा से फ़िर ही और क्या होगा?
बहुत सुने हैं ज़न्नत- ए-हूर के क़िस्से
जो तुम नहीं वहाँ तो फ़िर ही और क्या होगा?
नश्तरों से जिसने लकीरों को तराशा हो
ज़रा से ज़ख्म से फ़िर ही और क्या होगा?
अल्फ़ाज़ ग़र होंठों तक आकर ठहर जाये
ऐसे इक़रार से फ़िर ही और क्या होगा?
जिसके मिसरों से पलकें न डूबी जायें
ऐसी ग़ज़ल से फ़िर ही और क्या होगा?
सारी रात तेरी याद में जलता है 'अमर'
-अमर कुशवाहा
१६.०६.२०२०
No comments:
Post a Comment