द्युत सा
मैं कौंध सकूँ
अन्य का
पथ आलोकित हो
कण-कण
मिलाऊँ सलिल-पवन से
एक विश्व नया समेकित हो!
प्रेम, प्राप्ति में न
कंपन
भवसागर अनंत निगमन
नीरव रुधिर भाव दमन
अति विषय कभी न
सघन!
कनक-कनक
के खन-क्षण से
भय-व्याप्ति सदा प्रतिकार रहे
मौन भरा
सम्मोहन बिखरे
प्रकृति-जगत
अकाट्य रहे!
स्वयम के
बंधन के
पट खोल
एक लक्ष्य नया एक
मग नवीन
प्रथम किरण ज्यों धरा
उतरे
-अमर कुशवाहा