क़िस्मत के तीख़े वार से न डरने दो मुझे!
सिर्फ़ तस्वीर की तरह
न सजने दो मुझे
कोई कारण अग़र हो
तो बता
दो मुझे
चुप रहकर अब और
सजा न
दो मुझे!
तुम्हारे आने
से ही
बाग़ों में
बहार आयी
है
मुरझाई कलियाँ आज फ़िर
से मुस्करायी हैं
न आफ़ताब सही पर
चाँद ही
मिलने दो
मुझे
अपने ख़्वाबों में तबस्सुम सा खिलने दो मुझे!
पहले मंज़िल से हर
राह बिख़र जाती थी
बंद मुट्ठी से अक्सर पलकें गिर
जाती थीं
कड़ी धूप
में न
मोम सा
पिघलने दो
मुझे
फ़िर से
नयी राह
मंज़िल की
चुनने दो
मुझे!
सर्द रातों में भी
अब प्रेम की गरमाहट है
जबसे जीवन में तेरे क़दमों की
आहट है
अपने गीतों में भावों सा सजने दो मुझे
सितार पर
एक राग
सा बजने दो मुझे!
-अमर कुशवाहा