Friday, June 24, 2016

अनकही

भय से बाधित हूँ मैं
नहीं, डर नहीं है मुझे
किसी अस्त्र का
या फिर शस्त्र का
मैं डर गया हूँ
अपने हंसने की आदत से!!

जब भी ज्यादा प्रसन्न हुआ
ठीक उसी समय
भूत से निकल आतीं है
हजार समस्याएँ
छीन लेतीं हैं मेरी हंसी!!

अब तो हंस के भी
किसी से कोई बात नहीं कहता मैं
व्यंग बनकर निकलते हैं मेरे शब्द
बस तिलमिला उठते हैं
सुनने वाले भी
कहने वाला भी!!

बस ढूंढ रहा हूँ
कॉमिक्स के झूठे पात्रों
नागराज, ध्रुव, परमाणु,डोगा की कहानी
आखिर कहीं तो
सच जीत रहा है
काल्पनिक ही सही!!!

-अमर कुशवाहा

1 comment:

Unknown said...

Deeper than I thought