दिया जगत को नीला अम्बर रचा है फिर भी उसने बादल
और हमारी छाया हेतु लहराया हवावों का आँचल
कोटि-कोटि चेहरें हैं फिर भी एक तेरी ही आस है
कितना बड़ा है आखिर वो रक्षक जो दिखता नहीं पर पास है!
असमंजस कि है ये घड़ियाँ बादल के भी दो रूप हैं
एक श्वेत-श्वेत सा लगता
है एक निश्चित जल का रुप है
पर बाँध रखा है परतों में तूने लगते सब एक साथ है
कितना बड़ा है आखिर वो रक्षक जो दिखता नहीं पर पास है!
सूरज से गर्मी देता है तो चाँद से ठंडक पहुंचाता है
दु:खो के तूने पहाड़ दिए हैं पर खुशियों से भी मिलवाता है
ये तेरे बनाएँ सारे नियम ही इस जग की बुनियाद हैं
कितना बड़ा है आखिर वो रक्षक जो दिखता नहीं पर पास है!
यदि तूने हैं रूप बदलें तो मिलन भी तूने कराया है
कितनों से नफरत है दिल में पर प्रेम भी तूने सिखाया है
अब आगे तेरे चरणों में ही मुझको खो जाने का विश्वास है
कितना बड़ा है आखिर वो रक्षक जो दिखता नहीं पर पास है!
-अमर कुशवाहा
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