Tuesday, June 21, 2016

वक़्त के साथ

 वक्त के साथ एक दिन जिंदगी ढल जानी है

फिर नहीं मिलेगा तुझे दे डाल जो तेरी निशानी है

किसकी याद में तू यूँ ही तड़प रहा है 

क्या तुझे पता नहीं ये वक्त फिर  आनी है !

 

देखउसके आगे वक्त ने कर दिया समर्पण है 

क्यूंकि उसने वक्त को बना डाला दर्पण है 

आज वही वक्त उसके साथ-साथ चलता है

जो कर रहा है इंगित यही जिंदगानी है !

 

वक्त ही इस काल का इकलौता आधार है

वक्त से सुबह होती और होती हमेशा शाम है 

वह वक्त के मूल्य को अच्छी तरह समझता है 

उसे अपने दिल में फिर से लानी नयी रवानी है! 

 

देखउसे वक्त सच्चे उपहार दे रहा है 

दे रहा दृढ़ निश्चय और दे रहा ज्ञान है 

जब भी वह वक्त को अपने दिल से निकालता है 

उस  वक्त उसकी आँखों में नजर आता सिर्फ पानी है! 

 

उसने अपने मन को एक तथ्य से भर डाला है 

उदय होता है सूर्य वहीँ जहाँ जलती एक ज्वाला है 

वह वक्त के साथ ही 'अमरप्रेम करता है 

क्यूंकि वह समझ चुका है इसी का नाम जवानी है!

-अमर कुशवाहा

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