वक्त के साथ एक दिन जिंदगी ढल जानी है
फिर नहीं मिलेगा तुझे दे डाल जो तेरी निशानी है
किसकी याद में तू यूँ ही तड़प रहा है
क्या तुझे पता नहीं ये वक्त फिर न आनी है !
देख! उसके आगे वक्त ने कर दिया समर्पण है
क्यूंकि उसने वक्त को बना डाला दर्पण है
आज वही वक्त उसके साथ-साथ चलता है
जो कर रहा है इंगित यही जिंदगानी है !
वक्त ही इस काल का इकलौता आधार है
वक्त से सुबह होती और होती हमेशा शाम है
वह वक्त के मूल्य को अच्छी तरह समझता है
उसे अपने दिल में फिर से लानी नयी रवानी है!
देख! उसे वक्त सच्चे उपहार दे रहा है
दे रहा दृढ़ निश्चय और दे रहा ज्ञान है
जब भी वह वक्त को अपने दिल से निकालता है
उस वक्त उसकी आँखों में नजर आता सिर्फ पानी है!
उसने अपने मन को एक तथ्य से भर डाला है
उदय होता है सूर्य वहीँ जहाँ जलती एक ज्वाला है
वह वक्त के साथ ही 'अमर' प्रेम करता है
-अमर कुशवाहा
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