बेरुख़ी और
तगाफ़ुल की
ऐसी वफ़ा
न दो
तेरा न
हो पाऊं मुझे ऐसी
तो जफ़ा
न दो!
जो तुम
कह दो
एक बार
झुका दूँ
आसमाँ
अश्कों से
इस जमीं को और
सजा न
दो!
आईने में
देखकर नज़ारे भी शरमा गये
मेरी मुहब्बत को पलकों की अदा
न दो!
रास्ते ख़ुद-व-ख़ुद
तेरी ओर
मुड़ गये
हैं
क़दमों को
मेरे अपने तुम यूँ
रज़ा न
दो!
ख़्वाबों में
तेरा अक्स दिखता है ‘अमर’
किसी सदा
से मुझे फ़िर से
जगा न
दो!
-अमर कुशवाहा
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