Friday, June 24, 2016

एक मुद्दत से

राह तू ही मंज़िल तुम ही हर पल कहते रहते हैं

जरा पूछो इन क़दमों से तेरी ओर चलते रहते हैं।

 

एक मुद्दत के बाद मिले हाल हमारा क्या होगा?

जरा पूछो इन दीवारों से जो केवल उजड़े रहते है।

 

वक़्त इन्तहाँ इंतज़ार ये सब हमको मालूम नहीं

जरा पूछो इन अश्क़ों से हरदम बहते रहते हैं।

 

इश्क़ सफल या असफल ये फैसला कौन करे?

जरा पूछो इन पलकों से सजदे में झुकते रहते हैं।

 

ख़्वाबों की नज़दीकी हकीक़त की ये दूरीअमर

जरा पूछो इन ख़ामोशी से कलमा पढ़ते रहते हैं!

-अमर कुशवाहा