व्याकुल मानव क्रंदन जीवन
खंडित स्वप्न तिस पर आमोद
रिक्तता जड़ में, हो पर्णविहीन
आत्म-प्रवंचना और प्रमोद!
प्रथम चरण सूर्य-किरण ममता गोद
नभ छाया बंधु-सखा घर-आँगन
अब विकल मन त्रस्त समर गोद-विहीन
रक्तिम नैन कम्पित कर सूना-कानन!
स्रोत-अल्प सामर्थ्य-अधिक अपनत्व-पतन
सम्बन्ध वही जटिल ह्रदय शून्य-बोध
लक्ष्य-क्षरण पथ-हरण शोकुल-तन
युद्ध छोड़ भटकन शून्य-शोध!
वेद पढ़े उपनिषद-पंडित अधीरपन
कस्तूरी-खोज, मृग सी क्षण-निर्मूल
संत वाणी, स्वयं मन में है ज्ञात
हे मानव! एक बार बस देखो मूल!
-अमर कुशवाहा
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