Tuesday, June 21, 2016

इज़हार

जब भी उनके अधरों पर मुस्कान आती है 
मेरे  इस वीरान ह्रदय में एक धड़कन बढ़ जाती है
रहता नहीं कुछ याद क्यूंकि बुद्धि रुक जाती है
होते ही उदास धड़कन बंद हो जाती है 



मुझे याद आ रहा है जनवरी का वो महीना 
प्रथम थी तारीख और प्रथम था महीना 
प्यार के कागज़ पर दिल कि कलम से लिखकर 
मैंने उसे दिया था अपनी वफ़ा का लेटर 



उसने प्रेम-पत्र पढ़ा कि नहीं ये मुझे पता नहीं 
लेकिन अगले तेरह दिनों तक मैं उसके आगे पड़ा नहीं 
मैंने अपने पत्र में बस 'कोइ फ़रियाद' की थी 
मुझे  क्या पता था वो मेरी पहली शामत थी 



इन तेरह दिनों में पड़ी जब-जब उनपे मेरी नजर 
हर बार झुक गयीं उनकी नजरें शरमाकर 
उनके  शर्माने के अंदाज का मैंने अलग अर्थ निकाला 
और  अगले ही दिन उनका पीछा कर डाला 



बस चौदहवें तारीख का दर्द-ए-बखान बयां कर रहा हूँ 
क्यूंकि मैं अकेले ही एकतरफा प्यार कर रहा हूँ 
हुआ यह उस दिन कि मैंने उसे पुकारा 
और पास पहुँचते ही एक प्रश्न कर डाला 



पता चला उससे कि पत्र उसने पढ़ा नहीं 
यह सुनकर मैं कुछ देर और वहाँ अड़ा नहीं 



बीत चुके हैं वो दिन चल रहा है अक्टूबर का महीना 
अब उनके बिन हुआ है मेरा मुश्किल जीना 
सोचता हूँ कि अब उसे मैं लेटर नहीं लिखूंगा 
अपने दिल कि बात को मैं जुबां से ही कहूँगा!

-अमर कुशवाहा

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