Saturday, June 18, 2016

तुम

किसको भूल कहूँ मैं?
किसको स्वप्न कहूँ मैं?
क्या तुम्हारी हंसी एक छलावा मात्र थी?
क्या तुम्हारे बोलों में मेरा नाम नहीं था?
क्या तुम्हारीं आँखों ने मुझे नहीं देखा था?
क्या तुम्हारे क़दमों मुझ तक आ नहीं ठहरते थे?
क्या तुम्हारीं हाथों की हिना मेरी नहीं थी?
कैसे यकीन दिलाऊं तुम्हें?
मेरे लिए सुबह का दर्पण तुम
मेरे लिए सांझ का सूरज तुम
तुम मेरे लिए रात का चाँद हो
तुम मेरे लिए दैवत्व अनुराग हो
तुम ही मेरी पहली धड़कन
जीवन की आखिरी साँस भी तुम
तुम मेरे लिए विधि का विधान
मेरे लिए तुम परवाज हो
मेरे लिए हंसना भी तुम
मेरे लिए रोना भी तुम
तुम हो तो जहान है
तुम हो तो मैं हूँ
तुम्हारे बिना मैं हूँ ही क्या?
पेड़ की टहनी से टूटा हुआ सूखा पत्ता
जिसे हवा के थपेड़े घसीट रहें हैं
शायद घुमड़ते ही पहुँच जाऊं
तुम्हारे पास!!!!

-अमर कुशवाहा

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