Friday, June 24, 2016

न जाने

हाथों की लकीरें खोलकर जब यार का शगुन लेते हैं

तब तक चाँद-चकोर से माँग हम पुन लेते हैं!

 

प्रेम हमारा इतना कोमल जैसे बुलबुल की आवाज

जब भी गाती वो बागों में राग तेरा सुन लेते हैं!

 

जाने कब हो मिलन हमारा पीले होंगे कब तेरे हाथ

मेढों पर चलते-चलते हम पीली सरसों चुन लेते हैं!

 

सर्द मौसम महुवे की गंध और ओंस की ठंडी बूँदें

और बथुआ की हरियाली से तेरी चुन्नी बुन लेते हैं!

 

जाने कबसे बाँध रखा अपने मन की बातअमर

तस्वीर तेरी आगे रख कर ख़ामोशी की धुन लेते हैं!

-अमर कुशवाहा

No comments: