अंजुमन में दो पुष्प ला पहले खुद को ही चढ़ा
मंजिल बुला रही तुम्हें अब कदम आगे बढ़ा
मुस्कराकर परछाइयों से तू अगर डर जायेगा
ज्योति रुदन करेगी तम गीत कर्कश गायेगा!
रोशनी को था बड़ा अभिमान तेरे हाथों पर
बिखर जाये भले ही तन अटल रहे जज्बातों पर
खुद क़दमों को बढ़ाकर क्यों है खुद को मोड़ता?
हौसलें से लड़ तू लड़ाई संग्राम क्यों है छोड़ता?
हैं अगर जुनून यही बस ऐसे बढ़ता ही चल
मंजिलों को छु जाऊं इस आरजू में तू मचल
तूफ़ान को मोड़ के कर ले तू उसकी सवारी
चट्टान को देख कर आघात तू दे करारी!
निष्क्रिय तेरे दहाड़ से बंधन ले के भागेगा
परिवर्तन भी तेरे इशारों पर झूम नाचेगा
याद रख यदि तू ग़र शहीद हो जाएगा
इस मरी दुनिया में तू अमर कहलायेगा!
-अमर कुशवाहा
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