भोज के सन्दर्भ का बहिष्कार
विपरीतता के बिखरे अनगिनत फुहारA
उद्द्वेलित मन और उस पर झंकार!
विसर्ग का आकर्षण ध्यान का संहार
पथ का विचलन थपेड़ों की मार
हवा का नृत्य विष का आहार
विघटित स्वप्न पर जुड़ा संसार!
संसर्ग चेतना खींच ले चले
परिणाम पल का या न मिले
यही प्रत्यय और सत्ता अब पले
आ गगन लग जा धरती के गले!!!
-अमर कुशवाहा
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