Tuesday, June 21, 2016
नया नीड़
बालों की सफेदी
आँखों की सिकुड़न
और
चेहरे पर खिली हुई अप्रतिम मुस्कान
झलकता आत्मविश्वास
कानों की बालियाँ
नाक का लौंग
शायद फिर से
कुछ कहने की कोशिश करते हैं!
कुछ कर सकने की क्षमता
फिर से जागृत हुई लगती है!
मन में अगणित तरंगें
गिर-गिर कर
फिर से हिलोरें होने लगी हैं!
आशा की नईं किरण
सूरज की अमर लालिमा
फिर से बिखेर रहा है!
नव-वर्ष के सुबह आगमन पर
उसके कोमल हाथों के
स्पर्श का एहसास
फिर से लौट आया है!
फिर से हरियाली
मेढों के अंदर सिकुड़े खेतों में
उजागिर होने लगीं हैं!
सरसों के फूल और
उस पर बैठी हुई तितलियाँ
कोमल हाथों से पकड़े जाने का भय
वो मन मारकर
कलियों से उनका उड़ जाना!
मटर की फलियाँ
तुम्हारे हाथों से बनाए हुए
उस व्यंजन की याद दिलातीं हैं!
उन अँगुलियों के सहारे
जो कुछ भी घरौंदा तुमने बनाया था
जिसकी छत पर गिलहरियां
चहलकदमी किया करतीं थीं
तुम्हारे क़दमों की आहट न सुनकर
शायद कहीं दूर
खंडहर में तब्दील हो चुकी है!
अपने हाथों को
हर पहर निहारता हूँ
सोचता भी हूँ
इस नीड़ का निर्माण कैसे होगा?
मेरे हाथ
उस सहारे के बिना अधूरे हैं
जो कभी स्वयं
तुम्हारे हाथ हुआ करते थे!!!!!
-अमर कुशवाहा
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