न मैं जड़त्व का पर्यायवाची हूँ न हूँ अंत की परिभाषा
न तो टुकड़ों में बिखरा हूँ न हूँ स्वप्नों की भाषा
न तो संस्कृति का डर है न ही एक काल हूँ मैं
इन दो कर्मो के हाथों से केवल रचा हुआ त्रिकाल हूँ मैं!
न तो मैं रक्षक ही हूँ न भक्षक की श्रेणी हूँ
न तो निन्दित हूँ किसी से न मान की त्रिवेणी हूँ
न ही हूँ मैं अनदेखा न ही एक पहचान हूँ मैं
इन दो कर्मो के हाथों से केवल रचा हुआ त्रिकाल हूँ मैं!
न आग मुझे जलाती है न नीर मुझको गलाता है
न तो बंधन का बादल है न वायु मुझे बहकाता है
न ही एक प्रहलाद हूँ मैं न ही अनंत अभिमान हूँ मैं
इन दो कर्मो के हाथों से केवल रचा हुआ त्रिकाल हूँ मैं!
न नींद है मेरी आँखों में न जगा हुआ ही रहता हूँ
न सावन की चाह है मन को न पतझड़ ही सहता हूँ
न तो है मुझमे भेद का ज्ञान न ही एक समान हूँ मैं
-अमर कुशवाहा
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