Tuesday, June 21, 2016

भूत और भविष्य

जो घटित हुआ वो स्थिर है नहीं कभी वह बदला है

कल के बारे में सोच रहा मन हुआ आज फिर पगला है

दोनों के हैं अर्थ निरर्थक फिर भी क्यूँ ऐसा प्रतिवाद

क्यूँ-कर हुआ ये आज से पहले क्या होगा फिर कल के बाद?

 

जब था तू जीवन के अंदर कल के बारे में खोया था

नेत्र खुले जब सृष्टि में तेरे भूत ही कंठ से रोया था

आज हुआ है उद्भव तेरा फिर आज से क्यूँ ऐसा आगाज

क्यूँ-कर हुआ ये आज से पहले क्या होगा फिर कल के बाद?

 

चढ़ पगडंडी पर तुने जब कल को फिर से निहारा था

उस पल तेरे मन को आखिर लगा पूर्व ही प्यारा था

केवल कल की मीमांसा में सुन सका अब की आवाज

क्यूँ-कर हुआ ये आज से पहले क्या होगा फिर कल के बाद?

 

पाँव पसार अनंत में फिर से तुने सोचा कल का

जब अंत समय आया चलचित्र चला फिर से पिछलों का

इन दो शब्दों के जंगल में इतने जीवन क्यूँ बरबाद

क्यूँ-कर हुआ ये आज से पहले क्या होगा फिर कल के बाद?

-अमर कुशवाहा

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