जो घटित हुआ वो स्थिर है नहीं कभी वह बदला है
कल के बारे में सोच रहा मन हुआ आज फिर पगला है
दोनों के हैं अर्थ निरर्थक फिर भी क्यूँ ऐसा प्रतिवाद
क्यूँ-कर हुआ ये आज से पहले क्या होगा फिर कल के बाद?
जब था तू जीवन के अंदर कल के बारे में खोया था
नेत्र खुले जब सृष्टि में तेरे भूत ही कंठ से रोया था
आज हुआ है उद्भव तेरा फिर आज से क्यूँ ऐसा आगाज
क्यूँ-कर हुआ ये आज से पहले क्या होगा फिर कल के बाद?
चढ़ पगडंडी पर तुने जब कल को फिर से निहारा था
उस पल तेरे मन को आखिर लगा पूर्व ही प्यारा था
केवल कल की मीमांसा में सुन न सका अब की आवाज
क्यूँ-कर हुआ ये आज से पहले क्या होगा फिर कल के बाद?
पाँव पसार अनंत में फिर से तुने सोचा कल का
जब अंत समय आया चलचित्र चला फिर से पिछलों का
इन दो शब्दों के जंगल में इतने जीवन क्यूँ बरबाद
-अमर कुशवाहा
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