मित्र मेरे!
समझा जिसको सत्य था तुमनें
थे वह केवल तथ्य
कुछ शब्दों ने आकार लिया था
बस!
जो झंकृत कर सांसो को
वो शब्द निकलते
कुछ और प्रमाणित होते
उनमे जीवन की गंगा बहती!
तुम्हें लगा कि तुमनें केवल
मेरे शब्द सुने हैं
पर इससे पहले कि पहुंचे
तुम्हारे कर्ण -पटल पर
हवा उनमें थी घुल-मिल बैठी!
हर-बार परीक्षा हो मेरी
वो भी शब्दों के आकारों से
स्वीकार नहीं है
बस झाँको मेरी आँखों में
जिसमें सबकुछ की तथता है!
समझा जिसको सत्य था तुमनें
थे वह केवल तथ्य
कुछ शब्दों ने आकार लिया था
बस!
जो झंकृत कर सांसो को
वो शब्द निकलते
कुछ और प्रमाणित होते
उनमे जीवन की गंगा बहती!
तुम्हें लगा कि तुमनें केवल
मेरे शब्द सुने हैं
पर इससे पहले कि पहुंचे
तुम्हारे कर्ण -पटल पर
हवा उनमें थी घुल-मिल बैठी!
हर-बार परीक्षा हो मेरी
वो भी शब्दों के आकारों से
स्वीकार नहीं है
बस झाँको मेरी आँखों में
जिसमें सबकुछ की तथता है!
-अमर कुशवाहा
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