कहते हैं सब
अकेला होता है आदमी
रिश्ते बेमानी होते हैं
फिर भी जीते हैं रिश्तों में
क्यूँकि अपने-आप जीना
किसी को न आया
जीवन चलता है इसी तरह से
और ऐसे ही चलता रहेगा
आने वाली सदियों में
सपनें देखते हैं हम सभी
पर उनमें से ज्यादातर टूट जाते हैं
कि लहुलुहान जिंदगी
बेतहाशा गम लिए
टुकड़ों को बटोरती है
पर सच हो जाने पर
इतने बदल जाते हैं
कि सच्चाई बन जाते हैं
वो कठोर सच्चाई
जिसमें वो सब नहीं होता
वो झूठ था?
या फिर सच का
मर्मस्पर्शी आलिंगन!!!!
-अमर कुशवाहा
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