Saturday, June 18, 2016

क्यों

बदली छायी क्यूँ-कर ऐसे
बूँद नहीं बरसेंगें क्यूँ लगता ऐसे
मिलन नहीं सविता सागर का जैसे
अब आखिर बादल क्यूँ-कर बरसे?

चाँद शिथिल सा लगता क्यूँ
तारों ने चमकना छोड़ा क्यूँ
चिड़ियों ने चहकना छोड़ा क्यूँ
पथ ने कदम को मोड़ा क्यूँ?

स्वागत भी अपमान है करता
समुद्र भी अपने को भरता
सुध में है फिर भी गिरता
रुकता है फिर भी चलता!

किसकी पहचान करूं मैं अब
मुझे परखते रहें हैं सब
निरर्थकता का जोर है जब
मानवता में हिलोर है कब???

-अमर कुशवाहा

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