Saturday, June 18, 2016

कब तक

कोई तो हो जो भावों को समझे
कोई तो हो जो रिश्तों को समझे
कोई तो हो जो सबमें सिमटे
कोई तो हो जिसे अपना कहूँ?

कैसे-कैसे विचार हैं
उत्तरों में भी सवाल हैं
जहान तो विशाल है
पर मन क्यूँ कंगाल है?

कब तक भागूँ इनके पीछे?
कब तक रहूँ जड़े सींचें?
कब तक रखूं ह्रदय से भीचें?
कब तक खुद को बंद रखूं?
आखिर कब तक???

-अमर कुशवाहा

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