क्या रिश्तों की परिभाषा बदली है?
क्या अपनत्व की चाह बदली है?
क्या प्रदुर्भावों का विवेचन बदला है?
क्या संस्कृति का अनुमोदन बदला है?
क्या मन के भाव बदले हैं?
क्या वैचारिक मतभेद बदले है?
क्या आकाश का रंग बदला है?
क्या मिट्टी की बांह बदली है?
क्या समन्वय बदला है?
क्या समापन बदला है?
क्या समय का चक्र बदला है?
क्या उसकी धुरी बदली है?
क्या सूर्य की परिधि बदली है?
क्या ग्रहों की कक्षा बदली है?
क्या ब्रह्मांड बदला है?
क्या ईश्वर और उसका मन बदला है?
तो मैं क्यूँ???
-अमर कुशवाहा
No comments:
Post a Comment