लौटना चाहता हूँ,
पुनः उसी क्षितिज के पास
जहाँ छोड़ा था
तुम्हारी अँगुलियों ने
मेरी अँगुलियों का साथ
कुछ पल के लिए ही सही
हम मिले थे वहीँ
जहाँ हर पल
धरती और आकाश मिलते हैं
शायद तुम्हें पता नहीं
तुम्हारी अंगुलियों के निशान
मेरे अंगुलियों पर
अब भी मौजूद हैं!!!
-अमर कुशवाहा
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