नहीं बिखरना मुझसे बस इतना कह गये
वगरना कई
और थे
मझधार में
बह गये!
ख्व़ाब लेकर उड़े सबको दूर कहीं फ़लक पर
हर मोड़
पर मुड़ते रहे और
हम वहीं रह गये!
ज़ज्बात बातों के नहीं सवाल कुछ
होंठों के
थे
आँख मुस्कराई ही थी
कि आँसुओं से भर
गये!
नसीब के
एक खेल
ने हमको किया इज़ारा
छाँव में
जिसकी थी
करवट रात
में ढह
गये!
कोशिश बहुत की आख़िर दरख्तों ने
‘अमर’
कारवाँ लंबा रहा मगर
दूरी को
हम सह
गये!
-अमर कुशवाहा