पुरानी पंक्तियाँ फ़िर से दुहराईं गयीं
पुरानी कहानियाँ फ़िर से सुनाईं गयीं
पुरानी तलवारें फ़िर से निकाले गये
पुरानी ग़लतियाँ फ़िर से दिखलाईं गयीं!
किसी ने प्रश्न नहीं किया
उन्हें तो प्रयोजन था, केवल
पुरानी पंक्तियों से,
पुरानी कहानियों से,
पुराने तलवारों से,
पुरानी ग़लतियों से!
और इस तरह वर्तमान में
तथ्यों का गला कुचला गया
कि, सभ्यता न जाने
कितने ही पग पीछे जाकर
ठीक उसी मोड़ पर खड़ी हो गयी
जब वह असभ्यता कही जाती थी!
अब बस ताकतीं है
वर्तमान की आँखें, और
आँसुओं के सैलाब में
बची है बस एक कहानी
कहाँ को जाना था, और
सब किधर चले आये?
-अमर कुशवाहा