आज सुबह चाय की
गरम चुस्कियों के
साथ
एक नया
विचार जाने कैसे मेरे मन में
आया
कि समाज की सबसे मूल समस्या का समाधान
देखो किसी तरह समाज के जड़
में है
समाया!
हर तरफ
है फ़ैला पोलिटिकल करप्शन
ब्युरोक्रसी भी
हो ही
गयी है
बड़ी टेंशन
कहने को
तो चेक
एंड बैलेंस की नीति है
पर मेरे विचारों को
इसी पर
ही आपत्ति है!
चेक एंड
बैलेंस की
नीति अब
बदल गयी
है
चेक में
बैलेंस पूरी तरह से
मिल-घुल
गयी है
चाहें संसद का पोलिटिक्स हो
या ग्राम-प्रधानी
चेक एंड
बैलेंस को
हर जगह
है टाँगें अड़ानी!
प्रश्न यह
है कि
किसे चेक
करें और
किसे बैलेंस?
अब नहीं बचा है
इस नीति में कोई
भी कॉमन-सेन्स
जब नेताओं एवं नौकरों ने एक-लूट-नीति अपना ली
तो मैंने चेक एंड
बैलेंस की
नीति बनाने की ठान
ली!
देखता हूँ
हर तरफ
है फ़ैला समस्या लिंग-भेदभाव की
लेकिन मानों यही मूल
आवश्यकता है
मेरे अलगाव की
अब एक
तीर ही
से दो
शिकार संभव हो सकता है
भ्रष्टाचार के
साथ लिंग-भेदभाव भी
खत्म हो
सकता है!
कुछ ऐसा
करो कि
सारे पोलिटिकल पोस्ट महिलाओं को दे
दो
और सारी की सारी ब्युरोक्रेसी पुरुषों के लिए
सुरक्षित कर
दो
साथ ही
तड़के के
रूप में
बनाओ अब
एक और
नया क़ानून
ब्युरोक्रेट नहीं मनायेगा किसी पोलिटिकल महिला के संग
हनीमून!
ब्युरोक्रेट पुरुष, महिला-नेत्री से गठजोड़ नहीं कर
पाएंगे
क्योंकि ऐसा
करने पर
वे खुद
को दबा
हुआ ही
पाएंगे
महिला-नेत्री, पुरुष-ब्यूरोक्रेट से
कभी न
हाथ मिलाएगी
क्योंकि ऐसा
कर वो
नारी-सम्मान का मौका ही गवाएगी!
अब चेक
एंड बैलेंस का नियम पूरी तरह
से कारगर होगा
और लिंग-भेदभाव का
समाधान भी
निःसंदेह पूरा होगा
हर प्रान्त में सुख, संपदा एवं
ईमानदारी की
फसल लहराएगी
भारत फिर
से शस्य-श्यामला, सोने के कण-कण से
बिंध जायेगी!
-अमर कुशवाहा