Wednesday, February 9, 2011

तेरी राह में

इश्क़, फ़रेब, ही कोई क़सम दी मैंने

हौले-हौले ख़ुद ही हाथों से ज़ख्में हैं सी मैंने!

 

क़दम इधर पड़े और पड़े उधर क़दम

निग़ाहों से कुछ इस तरह मय है पी मैंने!

 

इक़रार किया मैंने, इनक़ार किया उसने

ज़ज़्बात दिल ही दिल में बस है दबा ली मैंने!

 

पास ही रुके और शब्बा-खैर ही किया

परछाईं को वफ़ा समझ बस चूम ली मैंने!

 

दर्द परेशां, ख़ुशी का सबबअमर

उनके याद में ऐसे ही है ज़िन्दगी जी मैंने!


-अमर कुशवाहा

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