Wednesday, December 18, 2019

हालात-ए-शहर...

कई  गलियाँकई  मकांपैमानें बहुत हैं

ये  मेरा शहर  है जहाँ  दीवानें  बहुत   हैं। 

 

ख़ुदी  में  इस  तरह  सब  डूब  से  गये हैं

हालात-  -शहर  में  अनजाने  बहुत  है।

 

नफऱत भरी निग़ाह हाथों में लिये ख़ंजर

नशे की नई दस्तूर के मय-ख़ाने बहुत हैं।

 

घर राम का जले  या ऱहीम का हो ख़ाक

उठते धुयें  में  बिख़रे अफ़साने बहुत  हैं।


एक दीया मज़ार पर जला दे ज़रा 'अमर

यहाँ हैवानियत के बढ़ते परवाने बहुत हैं।

-अमर कुशवाहा