छद्म नैतिकता एवं संस्कार!
आजकल सुबह जब भी नींद खुलती है तो आदतन अनेकों लोगों की
तरह मेरी भी मोबाइल फ़ोन चेक करने की आदत है और मुझे यह आदत अधिकांशतः मेरी पिछली पोस्टिंग में ऑफिस का फ़ोन चेक करने की वजह से
लगी, कारण था
प्रशासन का इस नयी तकनीक पर निर्भर होना। पर यहाँ मैं ऑफिस और उसके कार्य के
बारें में बात नहीं कर रहा, मेरा विषय है
नैतिकता एवं संस्कार, विशेषकर इसका
छद्म रूप, जिसके बारें में जानते सब हैं, बस मानते नहीं! कौन कहता है कि
इक्कीसवीं सदी में नैतिकता एवं
संस्कारों का ज्ञान देने वाला कोई नहीं रहा? ज़नाब! सुबह-सुबह और अक्सर रात में भी आजकल सोशल
मीडिया के माध्यम से गुडमोर्निंग और गुडनाईट के बहाने न जाने कितने ही
नैतिकता एवं संस्कार सिखाने वाले सन्देश आते ही रहते हैं। अगर मैं गलत नहीं हूँ, तो मेरी तरह अधिकतर लोग भी इसे
नहीं पढ़ते। इसका यह अर्थ
नहीं कि मैं अनैतिक हूँ। सच कहूँ तो ज्ञान, विशेषकर नैतिकता एवं संस्कार से संबंधित, की महत्ता तब और भी बढ़ जाती है, जब ज्ञान देने वाले का स्वयं मन, वचन एवं कर्म से उस ज्ञान पर
शत-प्रतिशत विश्वास हो और वह स्वयं उस ज्ञान का अनुसरण करता हो, अन्यथा वह ज्ञान खोखला ही साबित होगा। कहा जाता है कि महात्मा
गाँधी ने एक कार्यकर्ता और उसके पुत्र को एक सप्ताह बाद आकर मिलने को कहा था, क्योंकि वह चाहता था कि महात्मा
उसके पुत्र को
समझाये जो अत्यधिक गुड़ के सेवन का आदी था। गाँधी जी स्वयं उस समय तक गुड़ का अत्यधिक सेवन किया
करते थे। पहले उन्होंने एक सप्ताह में अपनी इस आदत से छुटकारा पाया,उसके उपरांत ही उन्होंने उस
कार्यकर्ता के पुत्र को अत्यधिक गुड़ के परहेज़ की नसीहत दी। अब उस बालक ने उस नसीहत का कितना पालन किया, यह उसकी अपनी सोच-समझ पर निर्भर
था। किंतु नसीहत देने वाले के मन में यह विश्वास अवश्य था कि उस आदत से छुटकारा पाया जा
सकता है। कहते हैं कि एक अच्छा ज्ञान न केवल शिष्य को परिष्कृत करता है बल्कि गुरु को भी मथता है और उसका उद्धार करता है।
सोशल मीडिया के अलावा एक और स्रोत है नैतिकता एवं संस्कार
के ज्ञान का- तथाकथित बाबाओं एवं धर्मगुरुओं द्वारा, चाहें वह किसी भी धर्म, जाति एवं समाज से संबंधित हो। नैतिकता, संस्कार एवं इन्द्रियों को वश
में करने का मूलमंत्र देने वाले छद्म बाबाओं ने स्वयं उस ज्ञान का कितना अनुसरण किया है, यह तो आजकल जेलों में सजायाफ्ता
बाबाओं को देखकर समझा जा सकता है। मुझे एक बचपन की घटना याद आ रही है, जब मैं कक्षा सात का विद्यार्थी
था। हमारे स्कूल से थोड़ी दूर एक बुढ़ापार नामक गाँव था, जहाँ प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर एक बड़ा मेला लगा करता था तथा
मेला से पूर्व सात दिनों का विष्णु यज्ञ कथा का आयोजन हुआ करता था, जिसमें कई सारे बाबा आकर
ज्ञानामृत बांटा करते थे। किसी एक विशेष दिन, जिस दिन लगातार दो पीरियड के मास्टर साहब छुट्टी पर
थे, हम चार-पाँच
लोग उस यज्ञ का आयोजन देखने चले गये, वैसे आयोजन देखना बहाना था, मूल उद्देश्य तो प्रसाद एवं
चरणामृत लेना था। वहाँ पधारे बाबाओं में से एक बाबाओं में से एक बाबा हमारे समूह के एक लड़के से
पूर्व-परिचित थे। वह उसी लड़के के गाँव से थे एवं भरी जवानी में गाँव से भागकर संन्यासी हो गये थे। उम्र क़रीब पचपन वर्ष की रही
होगी, और वह अनेकों
धार्मिक संगोठियों में ज्ञानामृत बाँटने जाया करते थे। हम लोग उनसे मिले, जो तब फलों का सेवन करते हुये आराम फरमा रहे थे। बातचीत
के दौरान ही उनकी दबी हुयी कुंठा खुलकर हम लोगों के समक्ष आ गयी, जब उन्होंने वहाँ आने वाली महिलाओं के शारीरिक अंगों का वर्णन अश्लील शब्दों में पास
बैठे अन्य बाबाओं के साथ करना शुरू किया, और पूरा कमरा उन लोगों के ठहाकों से गूँजने लगा था।
मैं तुरन्त ही वहाँ से वापिस आ गया और फ़िर कभी न ही किसी बाबा से मिला और न ही उनपर विश्वास किया, तथा नैतिकता एवं संस्कार का
ज्ञान केवल परिवार एवं पुस्तक-पाठन से ही सीखना श्रेष्ठ समझा।
मैं यह नहीं कहता कि सारे बाबा, धर्मगुरु आदि ऐसे ही होते हैं, कुछ अच्छे एवं सच्चे भी होते हैं जो स्वयं के
बताये ज्ञान का अनुसरण भी करते हैं, पर वह कौन हैं इसका पता कैसे लगाये? यही यक्ष प्रश्न है! बस इतना ही कहना चाहता हूँ, कि मैं किसी भी बाबा से नैतिकता
एवं संस्कार नहीं सीखता विशेषकर व्हाट्सएप बाबा से, और न ही इस तरह के सन्देश
अग्रसित करता हूँ! और यदि बहुत ही आवश्यक हुआ तो शिष्टाचारवश उत्तर में गुडमोर्निंग
या गुडनाईट टाइप कर के अग्रसित कर देता हूँ। एक रिपोर्ट के अनुसार इस तरह के
संदेशों की वजह से इन्टरनेट की स्पीड धीमी पड़ने लगी है। एक और करबद्ध निवेदन है कि
किसी को कुछ सिखाने से पहले स्वयं उसका अनुसरण करिये, तभी आपका ज्ञान प्रमाणित माना
जायेगा। अन्यथा जब मोबाइल फ़ोन की स्टोरेज क्षमता भर जायेगी, आपका ज्ञान हमेशा के
लिये डिलीट कर दिया जायेगा। धन्यवाद!
-अमर कुशवाहा, आई. ए. एस.
प्रोजेक्ट डायरेक्टर, एच. ए. डी. पी.
ऊंटी, तमिल नाडु।
०९.०४.२०१८
No comments:
Post a Comment